विराम चिन्ह की परिभाषा- भित्र-भित्र प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।
दूसरे शब्दों में- विराम का अर्थ है – ‘रुकना’ या ‘ठहरना’ । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।
सरल शब्दों में- अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।
इन्हीं विरामों को प्रकट करने के लिए हम जिन चिह्नों का प्रयोग करते है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।
यदि विराम- चिह्न का प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
जैसे-
- रोको मत जाने दो।
- रोको, मत जाने दो।
- रोको मत, जाने दो।
उपर्युक्त उदाहरणों में पहले वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं होता, जबकि दूसरे और तीसरे वाक्य में अर्थ तो स्पष्ट हो जाता है लेकिन एक-दूसरे का उल्टा अर्थ मिलता है जबकि तीनो वाक्यों में वही शब्द है। दूसरे वाक्य में ‘रोको’ के बाद अल्पविराम लगाने से रोकने के लिए कहा गया है जबकि तीसरे वाक्य में ‘रोको मत’ के बाद अल्पविराम लगाने से किसी को न रोक कर जाने के लिए कहा गया हैं।
विराम चिन्ह के प्रकार
- अल्प विराम ( , )
- अर्द्ध विराम ( ; )
- पूर्ण विराम ( । )
- उप विराम [ : ]
- विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! )
- प्रश्नवाचक चिह्न ( ? )
- कोष्ठक ( () )
- योजक चिह्न ( – )
- अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न ( ”… ” )
- लाघव चिह्न ( o )
- आदेश चिह्न ( :- )
- रेखांकन चिह्न (_)
- लोप चिह्न (…)
अल्प विराम ( , )
अल्प विराम (,) की परिभाषा- वाक्य में जहाँ थोड़ा रुकना हो या अधिक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि को अलग करना हो वहाँ अल्प विराम ( , ) चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
अल्प का अर्थ होता है- थोड़ा। अल्पविराम का अर्थ हुआ- थोड़ा विश्राम अथवा थोड़ा रुकना। बातचीत करते समय अथवा लिखते समय जब हम बहुत-सी वस्तुओं का वर्णन एक साथ करते हैं, तो उनके बीच-बीच में अल्पविराम का प्रयोग करते है।
जैसे-
- भारत में गेहूँ, चना, बाजरा, मक्का आदि बहुत-सी फसलें उगाई जाती हैं।
- जब हम संवाद-लेखन करते हैं तब भी अल्पविराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
- संवाद के दौरान ‘हाँ’ अथवा ‘नहीं’ के पश्चात भी इस चिह्न का प्रयोग होता है।
अल्प विराम के मुख्य नियम
वाक्य में जब दो से अधिक समान पदों और वाक्यों में संयोजक अव्यय ‘और’ आये, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।
जैसे-
- पदों में- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजमहल में पधारे।
- वाक्यों में- वह जो रोज आता है, काम करता है और चला जाता है।
जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।
जैसे-
- वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।
- सुनो, सुनो, वह क्या कह रही है।
- नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।
जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जाय, वहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है।
जैसे-
- भाइयो, समय आ गया है, सावधान हो जायँ।
- प्रिय महराज, मैं आपका आभारी हूँ।
- सुरेश, कल तुम कहाँ गये थे ?
- देवियो, आप हमारे देश की आशाएँ है।
जिस वाक्य में ‘वह’, ‘तो’, ‘या’, ‘अब’, इत्यादि लुप्त हों, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।
जैसे-
- मैं जो कहता हूँ, कान लगाकर सुनो। (‘वह’ लुप्त है।)
- वह कब लौटेगा, कह नहीं सकता। (‘यह’ लुप्त है। )
- वह जहाँ जाता है, बैठ जाता है। (‘वहाँ’ लुप्त है। )
- कहना था सो कह दिया, तुम जानो। (‘अब’ लुप्त है।)
यदि वाक्य में प्रयुक्त किसी व्यक्ति या वस्तु की विशिष्टता किसी सम्बन्धवाचक सर्वनाम के माध्यम से बतानी हो, तो वहाँ अल्पविराम का प्रयोग निम्रलिखित रीति से किया जा सकता है-
जैसे-
- मेरा भाई, जो एक इंजीनियर है, इंगलैण्ड गया है
- दो यात्री, जो रेल-दुर्घटना के शिकार हुए थे, अब अच्छे है।
- यह कहानी, जो किसी मजदूर के जीवन से सम्बद्ध है, बड़ी मार्मिक है।
अर्द्ध विराम ( ; )
अर्द्ध विराम ( ; ) की परिभाषा- पूर्ण विराम से कुछ कम, अल्पविराम से अधिक देर तक रुकने के लिए ‘अर्ध विराम’ का प्रयोग किया जाता है अथार्त एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे वाक्य या वाक्यांश का संबंध बताना हो तो वहाँ अर्द्ध विराम (;)का प्रयोग होता है।
दूसरे शब्द- जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है। यदि एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे वाक्य या वाक्यांश का संबंध बताना हो तो वहाँ अर्द्धविराम का प्रयोग होता है। इस प्रकार के वाक्यों में वाक्यांश दूसरे से अलग होते हुए भी दोनों का कुछ-न कुछ संबंध रहता है।
अर्द्ध विराम के कुछ उदाहरण
आम तौर पर अर्द्धविराम दो उपवाक्यों को जोड़ता है जो थोड़े से असंबद्ध होते है एवं जिन्हें ‘और’ से नहीं जोड़ा जा सकता है।
जैसे- फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल मन गया है; किन्तु श्रीनगर में और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते है।
दो या दो से अधिक उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग होता है।
जैसे-
- एम. ए.; बी, एड. । एम. ए.; पी. एच. डी. । एम. एस-सी.; डी. एस-सी. ।
- वह एक धूर्त आदमी है; ऐसा उसके मित्र भी मानते हैं।
- यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।
- हमारी चिट्ठी उड़ा ले गये; बोले तक नहीं।
- काम बंद है; कारोबार ठप है; बेकारी फैली है; चारों ओर हाहाकार है।
- कल रविवार है; छुट्टी का दिन है; आराम मिलेगा।
पूर्ण विराम (। )
पूर्ण विराम (। ) की परिभाषा- जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम ( । ) चिह्न लगाया जाता है। जैसे- पढ़ रहा हूँ।
हिन्दी में पूर्ण विराम चिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। यह चिह्न हिन्दी का प्राचीनतम विराम चिह्न है।
पूर्ण विराम के मुख्य नियम
पूर्णविराम का अर्थ है, पूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्यतः जहाँ वाक्य की गतिअन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जायें, वहाँ पूर्णविराम का प्रयोग होता है।
जैसे- यह हाथी है। वह लड़का है। मैं आदमी हूँ। तुम जा रहे हो।
इन वाक्यों में सभी एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। सबके विचार अपने में पूर्ण है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक वाक्य के अंत में पूर्णविराम लगना चाहिए। संक्षेप में, प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर पूर्णविराम का प्रयोग होता है।
कभी कभी किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अन्त में पूर्णविराम का प्रयोग होता है।
जैसे- गोरा रंग।
यहाँ व्यक्ति की मुखमुद्रा का बड़ा ही सजीव चित्र कुछ चुने हुए शब्दों तथा वाक्यांशों में खींचा गया है। प्रत्येक वाक्यांश अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। ऐसी स्थिति में पूर्णविराम का प्रयोग उचित ही है।
इस चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है।
जैसे- राम स्कूल से आ रहा है। वह उसकी सौंदर्यता पर मुग्ध हो गया। वह छत से गिर गया।
उप विराम [ : ]
उप विराम [ : ] की परिभाषा- जब किसी शब्द को अलग दर्शाया जाता है तो वह पर उप विराम चिन्ह (:) लगाया जाता है अथार्त जहाँ पर किसी वस्तु या विषय के बारे में बताया जाए तो वहां पर उप विराम चिन्ह (:) का प्रयोग किया जाता है।
जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्णविराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
कृष्ण के अनेक नाम है: मोहन, गोपाल, गिरिधर, श्याम, कान्हा आदि।
विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! )
विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! ) की परिभाषा- विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) का प्रयोग वाक्य में हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए किया जाता है अथार्त इसका प्रयोग अव्यय शब्द से पहले किया जाता है।
इसका प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
- अरे!, आप कौन हो!
- हे राम, यह कैसे हुआ!
- हाय, मुझे देर हो गयी!
जैसा कि आप ऊपर दिए गए वाक्यों में देख सकते हैं, अरे, हे राम, हाय आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से किसी तीव्र भावना को जताने का प्रयास किया जा रहा है। अतः ये शब्द विस्मयादिबोधक कहलायेंगे।
विस्मयादिबोधक के भेद
विस्मयादिबोधक के कुल 11 भेद होते हैं।
- शोकबोधक
- तिरस्कारबोधक
- स्वीकृतिबोधक
- विस्मयादिबोधक
- संबोधनबोधक
- हर्षबोधक
- भयबोधक
- आशीर्वादबोधक
- अनुमोदनबोधक
- विदासबोधक
- विवशताबोधक
शोकबोधक: जहां वाक्य में हे राम!, बाप रे बाप!, ओह!, उफ़!, हां! आदि आते हैं, तो वहां पर शोकबोधक होता है। इन शब्दों से शोक की भावना व्यक्त की जाती है।
उदाहरण: हे राम! ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ होता है!
तिरस्कारबोधक: जब वाक्यों में छि: ! , थू-थू , धिक्कार ! , हट ! , धिक् ! , धत ! , चुप ! आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो वे शब्द तिरस्कारबोधक कहलाते हैं।
उदाहरण: छि:! कितनी गन्दी जगह है ये!
स्वीकृतिबोधक: जब अच्छा ! , ठीक ! , हाँ ! , जी हाँ ! , बहुत अच्छा ! , जी ! आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है , तो ये स्वीकृतिबोधक के अंतर्गत आते हैं। इनसे हमें स्वीकृति की भावना का बोध होता है। अतः ये स्वीकृतिबोधक कहलाते हैं।
उदाहरण: अच्छा ! फिर ठीक है।
संबोधनबोधक: जब हो !, अजी !, ओ !, रे !, री !, अरे !, अरी !, हैलो !, ऐ! आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो वे संबोधनबोधक कहलाते हैं। इन शब्दों का प्रयोग करके हम किसी का संबोधन करते हैं।
उदाहरण: अरे! ज़रा रुको तो सही।
हर्षबोधक: जब वाह -वाह !, धन्य !, अति सुन्दर !, अहा !, शाबाश !, ओह ! आदि शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है , तो ये हर्षबोधक कहलाते हैं। इन शब्दों का प्रयोग करके हम हर्ष की भावना व्यक्त करते हैं।
उदाहरण: वाह ! ये तो किसी अजूबे से कम नहीं।
भयबोधक: जब बाप रे बाप ! , ओह ! , हाय ! , उई माँ ! , त्राहि – त्राहि जैसे शब्दों का प्रयोग वाक्य में किया जाता है, तो ये भयबोधक कहलाते हैं। इन शब्दों से भय या डर की भावना व्यक्त होती है।
उदाहरण: हाय! अब मेरा क्या होगा।
आशिर्वादबोधक: जब किनहीं वाक्यों में जीते रहो!, खुश रहो!, सदा सुखी रहो!, दीर्घायु हो आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो ये आशिर्वादबोधक कहलाते हैं। ये तब प्रयोग करते हिं जब बड़े लोग छोटे लोगों को आशीर्वाद देते हैं।
उदाहरण: सदा खुश रहो! बेटा।
विस्मयादिबोधक: जब वाक्य में अरे ! , क्या ! , ओह ! , सच ! , हैं ! , ऐ ! , ओहो ! , वाह ! आदि शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है , तो वे शब्द विस्मयादिबोधक कहलाते हैं। इन शब्दों से हमें आश्चर्य कि भावना का बोध होता है।
उदाहरण: अरे! तुम कब आये ?
अनुमोदनबोधक: जब वाक्य में हाँ !, बहुत अच्छा !, अवश्य ! आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो वे अनुमोदनबोधक कहलाते हैं। इन शब्दों से अनुमोद की भावना का बोध होता है।
उदाहरण: अवश्य! तुम यह कर सकते हो।
विदासबोधक: जब अच्छा !, अच्छा जी !, टा -टा ! आदि शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो वे शब्द विदासबोधक कहलाते हैं।
उदाहरण: अच्छा ! फिर मिलते हैं।
विवशताबोधक: जब वाक्य में काश ! , कदाचित् ! , हे भगवान ! जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो वे शब्द विवशताबोधक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों से विवशता की भावना व्यक्त की जाती है।
उदाहरण: काश! मैं भी यह कर पाता।
प्रश्नवाचक चिह्न ( ? )
प्रश्नवाचक चिह्न ( ? ) की परिभाषा- प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में ‘प्रश्नसूचक चिन्ह’ (?) का प्रयोग किया जाता है अथार्त जब किसी वाक्य में सवाल पूछे जाने का भाव उत्पन्न हो तो उस वाक्य के अंत में प्रशनवाचक चिन्ह (?) का प्रयोग किया जाता है।
बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
- तुम कहाँ जा रहे हो ?
- वहाँ क्या रखा है ?
प्रश्नवाचक चिन्हों का प्रयोग
जहाँ प्रश्र करने या पूछे जाने का बोध हो।
जैसे- क्या आप गया से आ रहे है ?
जहाँ स्थिति निश्रित न हो।
जैसे- आप शायद पटना के रहनेवाले है ?
जहाँ व्यंग्य किया जाय।
जैसे- भ्रष्टाचार इस युग का सबसे बड़ा शिष्टाचार है, है न ?
इस चिह्न (?) का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
जैसे- क्या कहा, वह निष्ठावान (?) है।
कोष्ठक ( () )
कोष्ठक ( () ) की परिभाषा- वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है अथार्त कोष्ठक चिन्ह () का प्रयोग अर्थ को और अधिक स्पस्ट करने के लिए शब्द अथवा वाक्यांश को कोष्ठक के अन्दर लिखकर किया जाता है।
वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
- उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।
- सब कुछ जानते हुए भी तुम मूक (मौन/चुप) क्यों हो?
- अध्यापक (चिल्लाते हुए) ” निकल जाओ कक्षा से।”
- विश्वामित्र (क्रोध में काँपते हुए) ठहर जा।
- धर्मराज (युधिष्ठिर) सत्य और धर्म के संरक्षक थे।
कोष्ठक के प्रकार
कोष्ठक चार प्रकार के होते हैं:
— = रेखा कोष्ठक (Line Bracket)
( ) = छोटा कोष्ठक (Simple or Small Bracket)
{ } = मझला कोष्ठक (Curly Bracket)
[ ] = बड़ा कोष्ठक (Square Bracket)
इनको इसी क्रम में तोड़ते हैं ।
यदि कोष्ठक के पहले ऋण चिन्ह हो, तो तोड़ने पर अन्दर के सभी चिन्ह बदल जाते हैं।
कोष्ठक वाले समीकरणों को हल करने के लिए निम्न नियम का पालन किया जाता है।
अंग्रेजी में इसे BODMAS से प्रदर्शित करते हैं
B = Bracket (कोष्ठक)
O = Of (का)
D = Division (भाग)
M = Multiply (गुणा)
A = Addition (जोड़)
S = Subtraction (घटाना)
हल करते समय इनको इसी क्रम में हल करते हैं अर्थात सबसे पहले कोष्ठक, फिर का, फिर भाग, फिर गुणा, फिर जोड़,अंत में घटाव करते हैं ।
योजक चिह्न ( – )
योजक चिह्न ( – ) की परिभाषा- हिंदी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न का प्रयोग अधिक होता है। दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसे ‘विभाजक-चिह्न’ भी कहते है।
दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न (–) का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
- जीवन में सुख-दुःख तो चलता ही रहता है।
- रात-दिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है।
- वह राम–सीता की मूर्ती है।
- सुख–दुःख जीवन में आते रहते हैं।
- रात–दिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है।
योजक चिह्न का प्रयोग
योजक चिह्न प्रायः दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता है, किंतु दोनों का स्वतंत्र रूप बना रहता है। इस संबंध में नियम यह है कि जिन शब्दों या पदों के दोनों खंड प्रधान हों और जिनमें और अनुक़्त या लुप्त हो, वहाँ योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- दाल-रोटी, दही-बड़ा, सीता-राम, फल-फूल ।
दो विपरीत अर्थवाले शब्दों के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- ऊपर-नीचे, राजा-रानी, रात-दिन, पाप-पुण्य, आकाश-पाताल, स्त्री-पुरुष, माता-पिता, स्वर्ग-नरक।
एक अर्थवाले सहचर शब्दों के बीच भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- दीन-दुःखी, हाट-बाजार, रुपया-पैसा, मान-मर्यादा, कपड़ा-लत्ता, हिसाब-किताब, भूत-प्रेत।
जब दो विशेषणों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में हो, वहाँ भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- अंधा-बहरा, भूखा-प्यासा, लूला-लँगड़ा।
जब दो शब्दों में एक सार्थक और दूसरा निरर्थक हो तो वहाँ भी योजक चिह्न लगता है।
जैसे- परमात्मा-वरमात्मा, उलटा -पुलटा, अनाप-शनाप, खाना-वाना, पानी-वानी ।
जब एक ही संज्ञा दो बार लिखी जाय तो दोनों संज्ञाओं के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- नगर-नगर, गली-गली, घर-घर, चम्पा-चम्पा, वन-वन, बच्चा-बच्चा, रोम-रोम ।
निश्रित संख्यावाचक विशेषण के दो पद जब एक साथ प्रयोग में आयें तो दोनों के बीच योजक चिह्न लगेगा।
जैसे- एक-दो, दस-बारह, नहला-दहला, छह-पाँच, नौ-दो, दो-दो, चार-चार।
जब दो शुद्ध संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त हों,तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- पढ़ना-लिखना, उठना-बैठना, मिलना-जुलना, मारना-पीटना, खाना-पीना, आना-जाना, करना-धरना, दौड़ना-धूपना, मरना-जीना, कहना-सुनना, समझना-बुझना, उठना-गिरना, रहना-सहना, सोना-जगना।
अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न ( ”… ” )
अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न (”… ”) की परिभाषा- किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न ( ”… ” ) का प्रयोग होता है।
जैसे- राम ने कहा, ”सत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है।”
उद्धरणचिह्न के दो रूप है- इकहरा ( ‘ ‘ ) और दुहरा ( ” ” )।
इसके कुछ मुख्य नियम
जहाँ किसी पुस्तक से कोई वाक्य या अवतरण ज्यों-का-त्यों उद्धृत किया जाए, वहाँ दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है और जहाँ कोई विशेष शब्द, पद, वाक्य-खण्ड इत्यादि उद्धृत किये जायें वहाँ इकहरे उद्धरण लगते हैं।
जैसे-
- ”जीवन विश्र्व की सम्पत्ति है। ”
- ”कामायनी’ की कथा संक्षेप में लिखिए।
पुस्तक, समाचारपत्र, लेखक का उपनाम, लेख का शीर्षक इत्यादि उद्धृतकरते समय इकहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे-
- ‘निराला’ पागल नहीं थे।
- ‘जुही की कली’ का सारांश अपनी भाषा में लिखो।
- ‘प्रदीप’ एक हिन्दी दैनिक पत्र है।
महत्त्वपूर्ण कथन, कहावत, सन्धि आदि को उद्धत करने में दुहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है।
विवरण चिन्ह ( :- )
विवरण चिन्ह ( :- ) की परिभाषा- विवरण चिन्ह (:-)का प्रयोग वाक्यांश के विषयों में कुछ सूचक निर्देश आदि देने के लिए किया जाता है।
उदाहरण:
- आम के निम्न फायदे है:-
- संज्ञा के तीन मुख्य भेद होते हैं:-
- वचन के दो भेद है:-
रेखांकन चिह्न (_)
रेखांकन चिह्न (_) की परिभाषा- किसी भी वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्द, पद, वाक्य को रेखांकित करने के लिए रेखांकन चिन्ह (_)का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
- हरियाणा और उत्तर प्रदेश को यमुना नदी प्रथक करती है।
- गोदान उपन्यास, प्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है।
- कृष्ण ने बरगद के पेड़ के निचे उपदेश दिया था।
विस्मरण चिन्ह या त्रुटिपूरक चिन्ह (^)
विस्मरण चिन्ह या त्रुटिपूरक चिन्ह (^) की परिभाषा- विस्मरण चिन्ह (^) का प्रयोग लिखते समय किसी शब्द को भूल जाने पर किया जाता है।
उदाहरण-
- राम ^ जएगा।
- श्याम ^ में रहते थे।
- राम बहुत ^ लड़का है।
- मैंने तुमसे वो बात ^ थी।
पदलोप चिन्ह (…)
पदलोप चिन्ह (…) की परिभाषा- जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न (…) का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
- राम ने मोहन को गली दी…।
- मैं सामान उठा दूंगा पर…।
- में घर अवश्य चलूँगा… पर तुम्हारे साथ।
निर्देशक चिन्ह (―)
निर्देशक चिन्ह (―) की परिभाषा- निर्देशक चिन्ह (―) का प्रयोग विषय, विवाद, सम्बन्धी, प्रत्येक शीर्षक के आगे, उदाहरण के पश्चात, कथोपकथन के नाम के आगे किया जाता है।
उदाहरण-
- श्री राम ने कहा ― सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए।
- जैसे ― फल सब्जी मसाले इत्यादि।
तुल्यता सूचक चिन्ह- (=)
तुल्यता सूचक चिन्ह- (=) की परिभाषा- वाक्य में दो शब्दों की तुलना या बराबरी करने में तुल्यता सूचक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
- अच्छाई = बुराई
- आ = बा
- 5 और 5 = 10
लाघव चिह्न ( o )
लाघव चिह्न ( o ) की परिभाषा- किसी बड़े तथा प्रसिद्ध शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का पहला अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य (०) लगा देते हैं। यह शून्य ही लाघव-चिह्न कहलाता है।
जैसे-
- पंडित का लाघव चिह्न – पंo,
- डॉंक़्टर का लाघव चिह् – डॉंo
- प्रोफेसर का लाघव चिह्न – प्रो०
- इंजिनियर के लिए – इंजी०
- उत्तर प्रदेश के लिए – उ० प्र०