वर्ण विचार किसे कहते है?
वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खण्ड या टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। इसको हम ऐसे भी कह सकते हैं- वह सबसे छोटी-सी-छोटी ध्वनि जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं, उसे वर्ण विचार कहते है। अ,आ, इ, ई, ओ, क्, ख्, च्, छ्, य्, र्, ल् आदि।
कुछ शब्द या ध्वनियां लें और इनमें निहित मूल ध्वनि (वर्ण) को समझो।
जैसे—“खा लो।”
वाक्य में दो शब्द और ध्वनियां हैं। इसके खंड करने पर—
ध्वनि/शब्द — खा लो
मूल ध्वनि (वर्ण)—ख्+आ (दो वर्ण हैं)। ल्+ओ(दो वर्ण हैं)।
यह स्पष्ट होता है कि-‘ख्’,’आ’ तथा ‘ल्’,’ओ’ के और टुकड़े या खंड नहीं किए जा सकते हैं, इसीलिए इन्हें वर्ण या मूल ध्वनि कहते हैं।
भाषा की सबसे छोटी-सी-छोटी इकाई ध्वनि है और इस ध्वनि को वर्ण कहते हैं।
वर्ण भाषा की छोटी-सी-छोटी इकाई है, इसके और कोई खंड नहीं किए जा सकते हैं।
उदाहरण:-राम और गाय में चार-चार मूल ध्वनियां हैं जिनके खंड नहीं किए जा सकते हैं-र+आ+म+अ=राम,ग+अ+य+आ=गाय। इस अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं। सभी वर्ण के अपने लिपि होते हैं। लिपि को वर्ण-संकेत भी कहा जाता है। वर्ण हिंदी में 52 होते हैं।
वर्णमाला—वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहा जाता है। 52 वर्ण या ध्वनियां हिंदी वर्णमाला में प्रयुक्त होती हैं-अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ-स्वर वर्ण।
अं(अनुस्वार),अ:(विर्सग)-अयोगवाह वर्ण
स्पर्श व्यंजन | अंत:स्थ व्यंजन | उष्म व्यंजन | संयुक्त व्यंजन | हिंदी के अपने व्यंजन |
क,ख,ग,घ,ङ | य,र,ल,व | श,ष,स,ह | क्ष,श्र,ज्ञ,त्र | ड़,ढ़ – |
च,छ,ज,झ,ञ | ||||
ट,ठ,ड,ढ,ण | ||||
त,थ,द,ध,न | ||||
प,फ,ब,भ,म, |
वर्ण के दो भेद होते हैं –
- स्वर वर्ण
- व्यंजन वर्ण
स्वर वर्ण- वह वर्ण जिसके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती है, जिनका उच्चारण स्वत: होता है। उसे स्वर वर्ण कहा जाता है। इसके उच्चारण में कंठ, तालु का उपयोग होता है। जीभ, होंठ का उपयोग नहीं होता है। 11 स्वर हिंदी वर्णमाला में हैं। जैसे -अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ।
स्वर वर्ण के कितने भेद होते हैं?
स्वर वर्ण के दो भेद होते हैं-
- मूल स्वर -अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ओ।
- संयुक्त स्वर- ऐ(अ+ए) और औ(अ+ओ)
मूल स्वर के भेद-
- हस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
हस्व स्वर:—जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर की अपेक्षा कम समय लगता है, उन्हें हस्व स्वर कहते हैं। अ,आ,उ,ऋ हस्व स्वर हैं।
दीर्घ स्वर:—वे स्वर जिनके उच्चारण में हस्व स्वर की अपेक्षा अधिक समय लगता है अतः इसमें 2 मात्राओं का समय लगता है। इसीलिए इसे दीर्घ स्वर कहा जाता है। आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,और दीर्घ स्वर हैं। दीर्घ स्वर दो शब्दों के मेल से बनता है।
जैसे:—आ=(अ+अ)
ई=(इ+इ)
ऊ=(उ+उ)
ए=(अ+इ)
ऐ=(अ+ए)
ओ=(अ+उ)
और=(अ+ओ)
प्लुत स्वर:—वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी ज्यादा समय या तीन गुना लगता है। ये 3 मात्राओं का समय लेता है, फ्लूत स्वर कहलाता है। अतः सरल शब्दों में कहा जाए तो जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना ना समय लगता है, उसे प्लुत स्वर कहते हैं। इसका चिन्ह (ऽ) है। इसका प्रयोग अक्सर पुकारते समय किया जाता है। जैसे:—सुनोऽऽ,राऽऽम,ओऽऽम्।
व्यंजन वर्ण:—जिस वर्णों को बोलने के लिए स्वर वर्ण की सहायता से जिस वर्ण का उच्चारण होता है, उसे व्यंजन वर्ण कहा जाता है।
जैसे:— क,ख,ग आदि का उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से होता है अतः यह व्यंजन वर्ण है क से ह तक 33 व्यंजन है।
व्यंजन वर्ण के प्रकार—
- स्पर्श व्यंजन
- अंत:स्थ व्यंजन
- ऊष्मा या संघर्षी व्यंजन
स्पर्श व्यंजन:— जिस व्यंजनों का उच्चारण करते समय कंठ, तालु मूर्द्धा (तालु का उपरी भाग) होंठ, दांत आदि के स्पर्श से बोले जाते हैं, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। इसकी संख्या 25 होती है। इसे ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहा जाता है क्योंकि यह 5 वर्गों में बंटे हुए होते हैं। प्रत्येक वर्ग का नामकरण उनके प्रथम वर्ग के आधार पर किया गया है।
- क वर्ग (क,ख,ग,घ,ङ) ये कंठ का स्पर्श करते हैं।
- च वर्ग (च,छ,ज,झ,ञ) यह तालु का स्पर्श करते हैं।
- ट वर्ग (ट,ठ,ड,ढ,ण) इनका उच्चारण मुर्दा से स्पर्श होता है।
- त वर्ग (त,थ,द,ध,न) उनका उच्चारण दांतों से स्पर्श होता है।
- प वर्ग (प,फ,ब,भ,म) यह होंठों का स्पर्श करते हैं।
अंत:स्थ व्यंजन:— अंत: का अर्थ होता है-अंदर। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुंह के अंदर ही रहें, इनका उच्चारण जीभ, तालू, दांत और होठों के परस्पर सटने से होता है, लेकिन कभी भी पूरा स्पर्श नहीं होता।
अंत:=मध्य/बीच, स्थ=स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का सा होता है। उच्चारण के समय मुंह के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती है। य, र, ल, व इसके 4 व्यंजन होते हैं।अतः यह चारों अंत:स्थ व्यंजन ‘अर्द्धस्वर’ भी कहलाते हैं।
उष्म व्यंजन:—‘श,स,ष और ह’ ऊष्म व्यंजन हैं। इनका उच्चारण रगड़ या घर्षण न से उत्पन्न ऊष्म (गर्म) वायु से होता है। इसीलिए इसे ऊष्म व्यंजन कहा जाता है। इसके संख्या चार होते हैं। इसके अलावा कुछ और व्यंजन ध्वनियां हैं।
(क) संयुक्त व्यंजन या संयुक्ताक्षर
(ख) दिव्य गुण व्यंजन
संयुक्त व्यंजन— जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों को मिलाकर बनाया जाता है, उन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है। जैसे-क्+स=श्र, त्+र=त्र, ज्+ग=ज्ञ, श्+र=श्र।
द्विगुण व्यंजन— जब शब्द में ही एक ही वर्ण दो बार मिलकर प्रयुक्त होता है, तब उसे द्वित्व व्यंजन कहा जाता है। जैसे- बिल्ली में ‘ल’ और पक्का में ‘क’ का द्वित्व प्रयोग होता है।