पेड़ – अरे कबूतर भाई! बहुत दिनों के बाद इधर तुम दिखे। कहां थे इतने दिन?
पक्षी – अरे भाई!मैं कहां जाऊंगा बस भोजन की तलाश में यहां वहां भटकते हुए बहुत दूर चला गया था।
पेड़ – अच्छा! फिर तो पेट भर कर खाना खाया होगा।
पक्षी – नहीं भाई! खाना तो नहीं मिला है। लेकिन एक शिकारी से जरूर मुलाकात हो गई थी। बहुत मुश्किल से उससे जान बचाकर आ रहा हूं।
पेड़ – अच्छा! चलो शुक्र है तुम उस शैतान शिकारी के चंगुल से तो बच गए।
पक्षी – भाई शिकारी के चंगुल से तो बच गए लेकिन मनुष्य की बुद्धि को क्या हो गया है? वह अपने लिए ही कब्र खोदने में लगे
हैं। एक तरफ तो बहुत तेजी से पेड़ों की कटाई कर रहे हैं और दूसरी तरफ पक्षी और जानवरों को अपने स्वार्थ के लिए मारने लगे हैं।
पेड़ – हां भाई! ठीक कहते हो तुम हम ने मनुष्य का क्या बिगाड़ा है ?कि हमको मनुष्य काट देते हैं।
पक्षी – हां भाई! हम ना जाने मनुष्य का क्या बिगाड़ा है? जो हमारी ही जान के पीछे पड़े हैं।
पेड़ – देखते हैं क्या होगा? अब चलो तुम भी शांत हो जाओ और आराम कर लो।