कारक किसे कहते हैं – भेद, प्रकार, उदहारण

संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्यों के अन्य शब्दों, खासकर क्रिया से अपना संबंध प्रकट करता है, उसे कारक कहते है जैसे-

  1. राम ने रावण को मारा।
  2. उसने उसको पढ़ाया।

प्रथम वाक्य में दो संज्ञा-शब्द (राम और रावण) और एक क्रिया शब्द (मारा) हैं। दोनों संज्ञा-शब्दों का आपस में तो संबंध है ही, मुख्य रूप से इनका संबंध क्रिया (मारा) से भी है, जैसे-

रावण को किसने मारा?        राम ने।

राम ने किसको मारा?           रावण को।

यहां मारने की क्रिया राम करते हैं, अतः राम ने = कर्ता कारक और मारने (क्रिया) का फल रावण पर पड़ता है, अतः रावण को = कर्म कारक।

स्पष्ट है कि करने वाला कर्ता कारक हुआ, इसका चिन्ह ‘ने’ है और जिस पर फल पड़ा वह कर्म कारक हुआ, जिसका चिन्ह ‘को’ है।

कारक के विभिन्न भेदों के अध्ययन से बातें और स्पष्ट हो जाएंगी।

कारक के कितने भेद हैं?

कारक के निम्नलिखित आठ भेद हैं-

विभक्तिकारककारक चिन्ह
प्रथमाकर्ता                      ने
द्वितीयकर्मको
तृतीया  करणसे द्वारा
चतुर्थीसंप्रदानको के लिए
पंचमीअपादानसे
षष्ठीसंबंधका के की
सप्तमीअधिकरणमें पर
अष्टमीसंबोधनहे अरे

आगे प्रत्येक की संक्षिप्त चर्चा की गई है-

1. कर्ता कारक: जो काम (क्रिया) करता है उसे कर्ता कारक कहते हैं। संस्कृत में कर्ता को ही कर्ता कारक कहते हैं, इसका चिन्ह अर्थात् इसकी विभक्ति ‘ने’ है, जैसे-

सोहन खाता है।         (0- विभक्ति)

सोहन ने खाया।      (ने- विभक्ति)

दोनों वाक्यों से स्पष्ट है कि खाने का काम (क्रिया) सोहन ही करता है। जहां पहले वाक्य में ‘ने चिन्ह लुप्त या छिपा हुआ है, वहीं दूसरे वाक्य में यह चिन्ह स्पष्ट है।

2. कर्म कारक: कर्ता द्वारा संपादित क्रिया का प्रभाव जिस व्यक्ति या वस्तु पर पड़े उसे कर्म कारक कहते हैं। इसका चिन्ह ‘को’ है, जैसे-

मोहन आम खाता है।             (0- विभक्ति)

मोहन सोहन को पीटता है।      (को- विभक्ति)

यहां खाना (क्रिया) का फल ‘आम’ पर और पीटना (क्रिया) का फल ‘सोहन’ पर पड़ता है, अतः ‘आम’ और ‘सोहन को’ कर्म कारक हैं । ‘आम’ के साथ ‘को’ चिन्ह छिपा है, लेकिन सोहन के साथ ‘को’ चिन्ह स्पष्ट है।

3. करण कारक: जो वस्तु क्रिया के संपादन में साधन का काम करें उसे करण कारक कहते हैं। इसके चिन्ह हैं_ ‘से’ और ‘द्वारा’, जैसे-

मैं कलम से लिखता हूं।               (कलम-लिखने का साधन)

उसकी उंगली चाकू द्वारा कट गई। (चाकू-काटने का साधन)

यहां ‘कलम से’ और ‘चाकू द्वारा’- करण कारक हैं ,क्योंकि ये वस्तुएं क्रिया-संपादन में साधन के रूप में प्रयुक्त हैं।

4. संप्रदान कारक: जिसके लिए कोई क्रिया (काम) की जाए उसे संप्रदान कारक कहते हैं। इसके दो चिन्ह हैं- ‘को’ और ‘के लिए’, जैसे-

राम ने श्याम को पुस्तक दी।

राम ने श्याम के लिए पुस्तक खरीदी।

यहां देने और खरीदने की क्रिया श्याम के लिए है। अतः ‘श्याम को’ एवं ‘श्याम के लिए’ संप्रदान कारक हैं।

5. अपादान कारक: अगर क्रिया के संपादन में कोई वस्तु अलग हो जाए तो, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसका चिन्ह ‘से’ है, जैसे-

पेड़ से पत्ते गिरते हैं।          (पत्ते का अलगाव- पेड़ से)

छात्र कमरे से बाहर गया।   (छात्र का अलगाव- कमरे से)

यहां ‘पेड़ से’ और ‘कमरे से’ अपादान कारक हैं, क्योंकि गिरते समय ‘पत्ते’ पेड़ से और जाते समय ‘छात्र’ कमरे से अलग हो गए।

6. संबंध कारक: जिस संज्ञा या सर्वनाम से किसी वस्तु का संबंध जान पड़े, उसे संबंध कारक कहते हैं। इसके चिन्ह हैं- ‘का, के और की’ जैसे-

चंदन का घोड़ा दौड़ता है।        उसका घोड़ा दौड़ता है।

चंदन के घोड़े दौड़ते हैं।           उसके घोड़े दौड़ते हैं।

चंदन की घोड़ी दौड़ती है।        उसकी घोड़ी दौड़ती है।

यहां चंदन का, के, की या उसका के किस संबंध कारक हैं, क्योंकि ‘का घोड़ा’, ‘के घोड़ी’, ‘की घोड़ी’ का संबंध चंदन (संज्ञा) या उस (सर्वनाम) से है। यही एक कारक है जिसका संबंध क्रिया से ना होकर व्यक्ति या वस्तु से रहता है।

7. अधिकरण कारक: जिससे क्रिया के आधार का ज्ञान प्राप्त हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके चिन्ह हैं-‘में’ और ‘पर’। जैसे-

शिक्षक वर्ग में पढ़ा रहे हैं।

रमेश छत पर बैठा है।

यहां ‘वर्ग में’ और ‘छत पर’ अधिकरण कारक हैं, क्योंकि इनसे पढ़ाने और बैठने की क्रिया के आधार का ज्ञान होता है।

8. संबोधन कारक: जिस संज्ञा से किसी के पुकारने या संबोधन का बोध हो उसे संबोधन कारक कहते हैं। इसके चिन्ह हैं- हे, अरे, ऐ, ओ, आदि। जैसे_

हे ईश्वर, मेरी सहायता करो।

अरे दोस्त, जरा इधर आओ।

यहां ‘हे ईश्वर’ और ‘अरे दोस्त’ संबोधन कारक हैं।

कारकों को संक्षेप में इस प्रकार याद कर सकते हैं:-

1. कर्ता ने; कर्म को; करण से; द्वारा; संप्रदान को, के लिए; अपादान से; संबंध का, के, की; अधिकरण में, पर; संबोधन हे, अरे आदि।

2. हे भरत! राम ने, रावण को, धनुष से, सीता के लिए, रथ से उतरकर, बाणों की बौछार कर, धरती पर मार गिराया।

‘ने’ चिन्ह का प्रयोग कहां कहां होता है:-

1. जब क्रिया सकर्मक हो, तब सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत, संदिग्ध भूत और हेतुहेतुमद् भूत में इस चिन्ह का प्रयोग होता है, जैसे-

सामान्य भूत- उसने रोटी खाई।

आसन्न भूत- उसने रोटी खाई है।

पूर्ण भूत- उसने रोटी खाई थी।

संदिग्ध भूत- उसने रोटी खाई होगी।

हेतुहेतुमद् भूत- अगर उसने रोटी खाई होती तो पेट भरा होता।

2. अकर्मक क्रिया में कर्ता के ‘ने’ चिन्ह का प्रयोग प्रायः नहीं होता है, लेकिन- नहाना, खांसना, छींकना, थूकना, भूंकना आदि अकर्मक क्रियाओं में इस चिन्ह का प्रयोग उपर्युक्त भूतकालों में होता है, जैसे-

राम ने नहाया।        उसने छींका था।

उसने खांसा था।       मैंने थूका  होगा।

3. जब अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया बन जाती है तब इस चिन्ह का प्रयोग उपर्युक्त भूत कालों में होता है, जैसे-

उसने बच्चे को रुलाया।

मैंने कुत्ते को जगाया था।

मां ने बच्चों को हंसाया।

उसने बच्चे को सुलाया होगा।

4. यदि अकर्मक क्रिया के साथ कोई सजातीय कर्म आ जाए, तो उपर्युक्त भूतकालिक प्रयोगों में यह चिन्ह प्रयुक्त होगा, जैसे-

उसने तीखी बोलियां बोली।      (बोली बोलना)

उसने टेढ़ी चाल चली है।           (चाल चलना)

5. यदि संयुक्त क्रिया का अंतिम खंड सकर्मक हो, तो उपर्युक्त भूत कालों में इस चिन्ह का प्रयोग होगा, जैसे-

उसने जी भर कर टहल लिया।

उसने जी भरकर टहल लिया है।

मैंने दिल खोल कर हंस लिया था।

उसने दिल खोल कर रो लिया होगा।

यदि उसने दिल खोल कर रो लिया होता, तो मन शांत हो जाता।

6. ‘देना’ या ‘डालना’ क्रिया के पहले यदि कोई अकर्मक क्रिया भी हो, तो अपूर्ण भूत और हेतुहेतुमद् भूत को छोड़कर सभी भूतकालों में इस चिन्ह का प्रयोग होगा, जैसे-

सामान्य भूत_उसने घंटों सो डाला।

आसन्न भूत_उसने घंटों सो डाला है।

पूर्ण भूत_उसने घंटों सो डाला था।

संदिग्ध भूत_उसने घंटों सो डाला होगा।

‘ने’ चिन्ह का प्रयोग कहां-कहां नहीं होता है

1. वर्तमान काल और भविष्यत काल के सभी भेदों तथा मात्र अपूर्ण भूतकाल में इस चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-

वह खाता है। वे खेलेंगे।

 वह खा रहा है। वह खेलते रहेंगे। 

वह खा रहा था। मैं पर अचूक लूंगा।

2. सिर्फ अपूर्ण भूतकाल को छोड़कर सभी भूत कालों में सकर्मक क्रिया रहने पर ‘ने’ चिन्ह का प्रयोग होता है, लेकिन पूर्वकालिक क्रिया रहने पर इस चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-

वह आकर पड़ा। मैं नहाकर खाया था।

वह बैठकर गया है। वह सोकर लिखा होगा।

3. सकर्मक क्रिया रहने पर भूत कालिक प्रयोग में ‘ने’ चिन्ह लगता है, लेकिन कुछ सकर्मक क्रियाओं-  बकना, बोलना, भूलना, समझना आदि के रहने पर इस चिन्ह का प्रयोग ना करें, जैसे-

वह मुझसे बोली। तुम नहीं समझे थे।

श्याम गाली बक  है। वह मुझे भूल गया होगा।

4. अकर्मक क्रियाओं के भूतकालिक  प्रयोग में इस चिन्ह का प्रयोग ना करें, जैसे-

वह आया। राम दौड़ा।

तुम नहीं गए? वह सो गया था।

5. चुकना, जाना और सकना के भूतकालिक  प्रयोग में इस चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है, जैसे-

वह लिख चुका। राम बोल ना सका।

तुम खा गए? तू गा ना सका।

‘को’ चिन्ह का प्रयोग कहां कहां होता है

‘को’ कर्म कारक का चिन्ह है। इसका प्रयोग कर्म कारक के अतिरिक्त कुछ दूसरे कारकों में भी होता है, जैसे-

1. कर्म कारक के रूप में-

राम ने रावण को मारा।   (रावण को- कर्म कारक)

2. कर्म कारक के रूप में, प्रेरणार्थक क्रिया के गौण कर्म में-

शिक्षक छात्र को हिंदी पढ़ाते हैं। (छात्र को- गौण कर्म)

मां बच्चे को खाना खिलाती है। (बच्चे को- गौण कर्म)

3. यदि अस्तित्व के अर्थ में ‘होना’ क्रिया का प्रयोग हो, तो कर्म कारक के ‘को’ का रूपांतरण ‘के’ में हो जाता है। जैसे-

सोहन के पुत्र हुआ है। (‘को’ के बदले- के)

उसके दो पत्नियां हैं। ‘को’ के बदले- के)

4. कर्ता कारक के रूप में क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए

राम को पटना जाना होगा। (राम को – कर्ता कारक)

मोहन को पत्र लिखना है। (मोहन को – कर्ता कारक)

5. कर्ता कारक के रूप में, कै, दस्त आदि शारीरिक आवेगों की अभिव्यक्ति हेतु-

रोगी को बिछावन पर टट्टी हो गई। (रोगी को- कर्ता कारक)

श्याम को हो गई। (श्याम को- कर्ता कारक)

6. कर्ता कारक के रूप में, मानसिक आवेगों की अभिव्यक्ति के लिए-

सीता को चिंता सता रही है। गीता को दुख हुआ।

7. कर्ता कारक में, यदि ‘दे’ सहायक क्रिया के रूप में प्रयुक्त हो-

सोहन को आम खाने दो। (सोहन को- कर्ता कारक)

मोहन को किताब पढ़ने दो। (मोहन को- कर्ता कारक)

8. संप्रदान कारक के रूप में-

राम ने श्याम को पुस्तक दी। (श्याम को – संप्रदान कारक)

बच्चे ने शिक्षक को छड़ी दी। (शिक्षक को – संप्रदान कारक)

9. इच्छा सूचक के रूप में, यदि मन, जी आदि का प्रयोग हो

भगवत गीता पढ़ने को मन करता है। (पढ़ने को – संप्रदान कारक)

रामायण सुनने को जी करता है। (सुनने को – संप्रदान कारक)

10. अधिकरण के रूप में समय सूचक शब्दों के साथ-

वह प्रतिदिन रात को आता है। (रात को – अधिकरण कारक)

वह 4:00 बजे सुबह को जाता है। (सुबह को – अधिकरण कारक)

‘से’ चिन्ह का प्रयोग कहां कहां होता है-

1. अपादान और करण दोनों कारकों का चिन्ह ‘से’ है, लेकिन दोनों में अर्थ की दृष्टि से बहुत अंतर है। जहां करण का ‘से’ साधन का अर्थ सूचित करता है, वहां अपादान का ‘से’ अलगाव का, जैसे-

मैं कलम से लिखता हूं (कलम से- करण कारक)

पेड़ से पत्ते गिरते हैं। (पेड़ से- अपादान कारक)

2. करण का प्रयोग ‘हेतु’ के अर्थ में-

वह किसी काम से आया है (काम से =काम हेतु)

3. करण का प्रयोग कारण बताने के अर्थ में-

वह प्लेग से मर गया। (मरने का कारण- प्लेग)

4. करण का प्रयोग प्रेरणार्थक क्रिया में-

जेलर कैदी से काम करवाता है। (कर्ता जेलर है, कैदी नहीं)

संपादन लेखक से किताब लिखवाता है (कर्ता संपादन है, लेखक नहीं)

5. अपादान का प्रयोग दिशा बोध कराने में-

बिहार झारखंड से उत्तर है।

6. अपादान का प्रयोग तुलना के अर्थ में-

सीता गीता से सुंदर है। मोहन सोहन से लंबा है।

7. अपादान का प्रयोग समय बोध कराने में-

मैं सुबह से पढ़ रहा हूं। वह 2 वर्षों से तबला सीख रहा है।

8. कर्ता कारक के रूप में, जब  अशक्ती प्रकट करनी हो-

राम से रोटी खाई नहीं जाती। (कर्मवाच्य)

सीता से चला नहीं जाता। (भाववाच्य)

9. कर्म कारक के रूप में, जब क्रिया द्विकर्मक रहती है-

छात्र गुरु से हिंदी सीख रहा है। सीता गीता से वीना सीख रही है।

10. जाति स्वभाव प्रकृति लक्षण आदि प्रकट करने में-

राम जाति से छत्रिय थे। वे स्वभाव से दयालु है।

‘में’ और ‘पर’ का प्रयोग कहां कहां होता है-

‘में’ और ‘पर’ अधिकरण कारक के चिन्ह हैं, इनका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-

(क) ‘में’ का प्रयोग:

1. अधिकरण कारक के रूप में, वस्तु, स्थान आदि के भीतर की स्थिति बतलाने में_

छात्र कमरे में है। पानी में मछली है।

2. अधिकरण कारक के रूप में, प्रेम, घृणा, दोस्ती, दुश्मनी आदि भावों को प्रकट करने में_

मोहन और सोहन में मित्रता है। दोनों में बहुत प्रेम है।

आप में शराफत कूट-कूट कर भरी है।

3. अधिकरण कारक के रूप में समय का बोध कराने हेतु_

मैं सुबह में व्यायाम करता हूं।

4. अधिकरण कारक के रूप में वस्त्र या पोशाक का भाव प्रकट करने में-

औरतें साड़ी में अच्छी लगती हैं। आप धोती में अच्छे लगते हैं।

5. अधिकरण कारक के रूप में जगह स्थान आदि बताने में,

वह मुंबई रहता है। (में लुप्त है)

मैं अब दिल्ली नहीं रहता हूं। (में लुप्त है)

6. करण कारक के रूप में किसी वस्तु का मूल्य बढ़ाने हेतु-

वह पुस्तक ₹40 में मिलती है।

वह वस्त्र कितने रुपए में है।

(ख) ‘पर’ का प्रयोग अधिकरण कारक में निम्नलिखित स्थितियों में होता है:

1. ऊपर का बोध कराने के लिए-

वह छत पर बैठा है। (छत के ऊपर)

2. समय दूरी तथा अवधि का बोध कराने के लिए-

वह 10:05 पर स्कूल गया। (समय)

रांची यहां से 10 मील पर है। (दूरी)

वह 5 दिनों पर लौटा। (अवधि)

3. संप्रदान कारक के रूप में मूल्य बताने के लिए-

आपका ईमान पैसों पर बिक गया।

वह ₹1000 मासिक पर काम नहीं करेगा।

कुछ शब्दों के एक कारक रूप यहां दिए जा रहे हैं।

संज्ञा की कारक रचना

बालक

कारकएक वचनबहुवचन
कर्ता बालक, बालक नेबालक, बालकों ने
कर्मबालक, बालक कोबालक, बालकों को
करणबालक (से, द्वारा)बालकों (से, द्वारा)
संप्रदानबालक के लिएबालकों के लिए
अपादानबालक सेबालकों से
संबंधबालक (का, के, की)बालकों (का, के, की)
अधिकरण बालक (में, पर)बालकों (में, पर)
संबोधनहे बालकहे बालकों

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *