रेल यात्रा पर निबंध – Essay on Train Journey in Hindi

प्रस्तावना

एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना यात्रा कहलाता है, जब कहीं दूर जाने की बात हो तो सबसे पहला ख्याल रेलगाड़ी का ही आता है, यात्रा की दूरी लंबी होने पर यात्रा का यह तरीका सबसे अच्छा होता है, नि:संदेह रेल की यात्रा करना काफी आरामदायक और सुविधाजनक होता है, रेलवे अन्य साधनों से बेहद सस्ती और आरामदायक होने के कारण हर तरह के लोग इससे यात्रा करना बेहतर समझते हैं।

हमारी देश के गरीब लोग का इसके बिना काम ही नहीं चलता है, रेलवे प्लेटफार्म से हम खाने- पीने की चीजें और रोमांचक वस्तुएं खरीद सकते हैं, मेरी पहली यात्रा 2019 में हुई थी, मैं अपने पिताजी के साथ गर्मी की छुट्टियों में हरियाणा गया था, पहली यात्रा का अनुभव बहुत ही खास होता है।

यात्रा का शुभारंभ 

मेरे रेलगाड़ी की यात्रा को करने के लिए घर से निकल पड़े थे, मैं अपने पिताजी के साथ ही जा रहा था, हम अपनी जरूरत का सामान लेकर ऑटो से रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए,  हमारी पहली यात्रा की शुरुआत रेलवे स्टेशन से हुई थी, मैं अपने पिताजी के साथ प्लेटफार्म नंबर दो पर जाकर बैठ गया,  प्लेटफॉर्म पर बैठने के लिए बैंचों की सुविधा रहती है, जिस पर मैं पिताजी के साथ आराम पूर्वक बैठ गया।

यात्रा का उत्साह 

यह बात है साल 2019 की, मुझे दिल्ली से हरियाणा जाना था, मैं अपने पिताजी के साथ था, मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था, पिताजी ने बताया था कि 12:30 PM बजे में नई दिल्ली से चलने वाली फ्लाईंग मेल से हमें हरियाणा के लिए चलना है।

यह मेरी प्रथम रेल यात्रा थी, अतः मैं प्रातः से बहुत उत्साहित था, इससे पूर्व मैंने गाड़ी देखी अवश्य थी लेकिन उस पर कभी यात्रा नहीं की थी, मैं और पिताजी हरियाणा में चाचा के यहां घूमने के लिए जा रहे थे, मैंने रेल यात्रा पर खिड़की के किनारे सीट लिया था।

रेल की यात्रा इतना सुखद थी कि मैं रास्ते में पेड़-पौधों, घरों और खुले आसमान को देखकर खो गया, रास्ते में जाते हुए मैं कई अच्छे-अच्छे मधुर संगीत सुन रहा था, मैंने रास्ते में कई स्टेशन देखा कई लोग उतर रहे थे तो कई लोग चल रहे थे।

स्टेशन का दृश्य

हमारी टिकट पहले ही खरीदे जा चुके थे, उस दिन मेरे जल्दी मचाने के कारण हम 12:00 बजे ही नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंच गए, साफ-सुथरा चहल-पहल से भरा रेलवे स्टेशन था, कोई कुली को आगे किए अटैचियां लिए आ रहा था, तो कोई अपना बैग संभाले गाड़ियों की ओर लपका जा रहा था।

12:05 तक हमने अपनी जगह ढूंढ निकाली, मुझे खिड़की के पास बैठने का बहुत मन था, और खिड़की के पास बैठने का मौका भी मिल गया,इसलिए मैं खुश बहुत था, गाड़ी पर बैठ कर मुझे बहुत अच्छा लगा।

गाड़ी का दृश्य

ठीक 12:30 में गाड़ी चली, लगभग सभी सीटें यात्रियों से भर गई थी लोग अपने-अपने संगे-संबंधियों के साथ किसी-न-किसी क्रिया में व्यस्त थे, अधिकांश लोग पत्र-पत्रिका, समाचार-पत्र या पुस्तक आदि पढ़ रहे थे।

एकाद जगह ताश का खेल चल रहा था, बुजुर्ग लगने वाले यात्री देश-विदेश की चर्चा में व्यस्त थे, कहीं से हंसी के फुहारे और मजाक के स्वर आ रहे थे, शायद यह किसी कॉलेज की छात्र-छात्राओं का समूह था जो मीठी -मीठी बातों में आनंद ले रहा था।

गाड़ी से बाहर का दृश्य

गाड़ी के बाहर चलते ही मेरा ध्यान बाहर के दृश्यों की तरफ खींच गया, मेरे लिए तो यह सजीव चलचित्र था, मैं दिल्ली से हरियाणा के सारे देशों को पी लेना चाहता था, मेरा ध्यान पटरी के कांटे बदलती गाड़ी की ओर गया मैं समझ नहीं पाया कि गाड़ी कैसे  उन आड़ी-तिरछी पटरियों में से अपना रास्ता ढूंढ रही है।

यह मैं समझता पाऊं कि गाड़ी रुक गई, यह सब्जी-मंडी स्टेशन था, यात्रियों का हुजूम स्टेशन पर खड़ा था, मैंने अपनी सीट संभाल ली, सब्जी मंडी स्टेशन पर इतने अधिक यात्री चढ़े कि कई यात्रियों को खड़ा रहना पड़ा, कई यात्री 2 सीट पर तीन-तीन करके बैठे जा रहे थे।

चहल-पहल

सब्जी मंडी से गाड़ी चली कि एक भक्ति-स्वर सुनाई दिया, यह कोई सूरदास जी थे, जो यात्रियों को गीत सुना कर अपना पेट भरते थे, यात्रियों ने उसका मीठा गीत सुना और बदले में उसे पैसे दिए, अब खिड़की के बाहर हरे-भरे खेतों,पूलों, नदियों, मकानों, रेलवे स्टेशनों की श्रृंखला शुरू हो गई।

जिन्हें मै रूचि पूर्वक देखता रहा, मुझे सब कुछ भा रहा था, यह सब मेरे लिए नया था, सोनीपत स्टेशन पर सैकड़ों यात्री उतर गए, इससे गाड़ी में फिर पर्याप्त जगह बन गई, गाड़ी में खाने-पीने का सामान बेचने वाले, जूते पॉलिश करने वाले, भीख मांगने वाले, खिलौने बेचने वाले आ जा रहे थे।

जहां जिस स्टेशन पर गाड़ी रुकती थी वहां चहल-पहल शुरू हो जाती थी, कब मैं हरियाणा स्टेशन पहुंच गया मुझे पता ही नहीं चला, पिताजी ने कहा बेटा — जल्दी चलो, जूते पहनो, स्टेशन आ गया है, मेरी प्रथम रेल यात्रा आज भी मुझे स्मरण है, वह यात्रा सुखद थी।

यात्रा का अनुभव

हमारा पहले से ही आरक्षण था, हमने आरक्षित डिब्बे में हम अपने निर्धारित सीट पर बैठ गए, हमारी ही तरह अन्य यात्री भी उस कंपार्टमेंट में अपनी-अपनी सीट पर आकर बैठ गए, गार्ड ने सिटी बजाई और हरी झंडी दिखाई, गाड़ी धीरे-धीरे छुक-छुक करती हुई स्टेशन से विदा हो गई, रेल गाड़ी अपने गति से आगे बढ़ रही थी।

मैं गाड़ी की खिड़की के पास बैठकर बाहर की दृश्यों को देखकर आनंद ले रहा था, सभी प्रकार के दृश्य सामने आ रहे थे, मुझे मेरी प्रथम रेल यात्रा बड़ी आनंददायक लग रही थी, मुझे बाहर के दृश्य अत्यंत लुभावने लग रहे थे, बड़े बड़े शहरों, नदियों, जंगलों को पार करती हुई हमारी रेलगाड़ी दूसरे दिन प्रात: हरियाणा पहुंच गई, हमने समय में भोजन व नाश्ता कर लिया था।

उपसंहार

हरियाणा जाना हमारी यात्रा का बहुत ही रोमांचक वर्णन है, मेरी पहली रेल यात्रा मुझे जीवन भर याद रहेगी, रेल यात्रा एक बहुत ही आनंदमय यात्रा होती है, हमारे देश में रेल गाड़ियों की संख्या तो बढ़ गई है लेकिन फिर भी भीड़ में कोई कमी नहीं आई है।

हमारी सरकार को रेल व्यवस्था में और भी सुधार करने चाहिए और रेलगाड़ियों की संख्या में वृद्धि भी करनी चाहिए, रेल यात्रा वास्तव में एक तरह से यादों का खूबसूरत सफर होता है जो पूरे जीवन भर याद रहता है, रेल से यात्रा करना सबसे सस्ता और आरामदायक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *