सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध – Essay on Sardar Vallabhbhai Patel

प्रस्तावना 

सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें ‘भारत के लौह पुरुष’ के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता और आधुनिक भारत के वास्तुकारों में से एक थे। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था और उनका पालन-पोषण एक किसान परिवार में हुआ था। पटेल के परिवार की समाज की सेवा करने की एक समृद्ध परंपरा थी, और इसने उन्हें समाज सेवा और राजनीतिक सक्रियता का कारण बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले उप प्रधान मंत्री बने।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म गुजरात के करमसद गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक किसान और गाँव के मुखिया थे, और उनकी माँ लाडबाई एक गहरी धार्मिक महिला थीं। पटेल परिवार में चौथी संतान थे और उनके तीन बड़े भाई और एक छोटी बहन थी। उनके माता-पिता ने उन्हें कम उम्र से ही कड़ी मेहनत, अनुशासन और निस्वार्थता के मूल्यों के बारे में बताया।

पटेल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के स्कूल में पूरी की और बाद में अपनी माध्यमिक शिक्षा के लिए नडियाद के एक हाई स्कूल में चले गए। 1891 में, 16 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और कानून का अध्ययन करने के लिए बॉम्बे के एक कॉलेज में दाखिला लिया। हालांकि, वित्तीय कठिनाइयों के कारण, उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और गुजरात लौटना पड़ा।

राजनीतिक जीवन 

सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी के अहिंसक प्रतिरोध और सामाजिक सुधार के दर्शन से बहुत प्रभावित थे। वे 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदार बने। पटेल अपने प्रशासनिक कौशल और लोगों को संगठित करने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए उच्च करों के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध आंदोलन, बारडोली सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद, पटेल कांग्रेस के एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे और अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष के रूप में चुने गए। उन्होंने गरीबों और शोषितों के उत्थान के लिए काम करना जारी रखा और उनके प्रयासों ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी, जिसका हिंदी में अर्थ ‘नेता’ होता है।

भारत की स्वतंत्रता में भूमिका

सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कांग्रेस के विभिन्न गुटों के बीच एकता लाने के लिए अथक प्रयास किया और भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार के साथ वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के कांग्रेस के फैसले के पीछे पटेल मुख्य रणनीतिकार थे, जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा का एक व्यापक अभियान था।

1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले उप प्रधान मंत्री बने और उन्हें रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने की जिम्मेदारी दी गई। पटेल विभिन्न राज्यों को एकजुट करने के लिए दृढ़ थे और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए रियासतों को मनाने के लिए अनुनय और बल दोनों का इस्तेमाल किया और 1950 में जब उनका निधन हुआ, तब तक वे लगभग सभी को भारतीय ध्वज के नीचे लाने में सफल रहे।

वल्लभभाई पटेल का मजबूत व्यक्तित्व

वल्लभ भाई पटेल लौह सामान मजबूत व्यक्तित्व के स्वामी थे।कठिन से कठिन परिस्थिति भी उनको कभी विचलित नहीं कर पाई। उनके मजबूत व्यक्तित्व का एक उदाहरण उनके जीवन के एक किस्से के जरिए समझा जा सकता है। साल 1909 में जब झावेर बा मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थीं, उस दौरान सरदार अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे। इतने में किसी ने पर्ची पर लिखकर झावेर बा के निधन की सूचना उन्हें दी। सरदार ने पर्ची जेब में रख ली और जिरह करने लगे। बाद में जब मुकदमा जीत गए और कार्यवाही समाप्त होने के बाद ही उन्होंने सभी को अपनी पत्नी के निधन की सूचना दी।

उनका कृतित्व

​खेड़ा सत्याग्रह की सफलता- पटेल ने इंग्लैंड से वकालत पढ़ी और उसके बाद साल 1913 में भारत लौटे। सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी के सत्याग्रह से काफी प्रभावित थे। साल 1918 में गुजरात के खेड़ा में सूखे की वजह से किसान कर देने में असमर्थ हो गए थे, ऐसे में उन्होंने कर देने से साफ मना कर दिया‌। लेकिन अंग्रेजी सरकार नहीं मानी, ऐसे में महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने खेड़ा में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इनके नेतृत्व में किसानों के प्रदर्शन के आगे अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और करों में रियायत देनी पड़ी।

​गृह मंत्री के रूप में पटेल- आजादी के बाद 562 रियासतों में बंटे भारतीय संघ को एकत्रित करना बड़ी चुनौती थी‌। गृह मंत्री होने के नाते पटेल ने यह जिम्मेदारी ली। उन्होंने जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर शेष सभी रियासतों का शांति पूर्वक या फिर थोड़े बहुत विद्रोह से (जिसे मामूली बल प्रयोग से दबा दिया गया) भारत में विलप करा दिया। इसके बाद उन्होंने जनमत संग्रह के आधार पर जूनागढ़ रियासत को भारत में मिलाया। बाद में हैदराबाद के निजाम ने भी आत्मसमर्पण कर दिया।

सरदार की अद्भुत कूटनीतिक, कौशल और नीतिगत दृढ़ता की वजह से महात्मा गांधी ने उन्हें ‘लौहपुरुष’ कहा था। लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत का ‘बिस्मार्क’ भी कहा जाता है।

उनके मजबूत व्यक्तित्व में सादगी और समर्पण का भाव

सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनने के प्रबल दावेदार थे। वे सर्वसहमति से प्रधानमंत्री बनने ही वाले थे, लेकिन महात्मा गांधी के निर्देश और नेहरू की जिद के कारण उन्होंने अपने कदम वापस ले लिए और जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन बेहद सादगी भरा था। बताया जाता है कि उनके पास खुद का मकान तक नहीं था और वह अहमदाबाद में एक किराए के मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उनका निधन हो गया था। कहते हैं कि जब उनका निधन हुआ तब उनके बैंक खाते में सिर्फ ₹260 मौजूद थे।

उपसंहार 

सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत अपार है। उन्हें उनके दृढ़ निश्चय, उनके प्रशासनिक कौशल और लोगों के बीच एकता लाने की उनकी क्षमता के लिए ‘लौह पुरुष’ के रूप में याद किया जाता है। वह सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के व्यक्ति थे और लोगों की सेवा करने में विश्वास रखते थे। भारत की स्वतंत्रता और भारतीय संघ में रियासतों के एकीकरण में उनके योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

31 अक्टूबर 2018 को गुजरात में उनके सम्मान में दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया गया था।

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