प्रस्तावना
विज्ञान के इस युग में मानव को जो कुछ वरदान मिले हैं तो कुछ अभिशाप भी मिले हैं, पर्यावरण के सभी घटकों जैसे वायु जल मृदा आदि का प्रदूषित हो ना पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है, पर्यावरण आज के समय में एक वैश्विक समस्या बनता जा रहा है।
पर्यावरण भी एक ऐसा अभिशाप है जो विज्ञान की कोख से जन्मा है, और जिसे सहने के लिए अधिकांश मानव मजबूर हैं, पर्यावरण प्रदूषण के कारण पूरी मानव जाति का भविष्य संकट में नजर आता जा रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकट समस्या नजर आ रही है, अगर समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो शायद आने वाले समय में यह जहरीला वातावरण पृथ्वी पर प्राणी – जगत के जीवन हेतु एक खतरा बन जाएगा।
प्रदूषण का अर्थ
प्रदूषण का अर्थ है- प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना, न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलना, न शांत वातावरण मिलना। प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं प्रदूषण हैं, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। यह पर्यावरण प्रदूषण में मुख्य हैं।
प्रदूषण के प्रकार
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रकार हैं -वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और मृदा प्रदूषण इन सभी प्रदूषण का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
वायु प्रदूषण
महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला हुआ है वहां 24 घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है, कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है, मुंबई की महिलाएं जब छत से कपड़े उतारने के लिए जाती हैं तो उन पर काले काले कण जमे हुए पाती हैं, यह सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं, और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं, यह समस्या वहां अधिक होती है।
जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण भंग होता है, वायु हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक है, वाहनों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं तथा रसायन वायु को प्रदूषित करता है, वायु प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियां, गले में जलन, त्वचा रोग संक्रमण बीमारियां होती हैं।
जल प्रदूषण
कल कारखानों का दूषित जल नदी नालों में मिलकर भयंकर जल प्रदूषण पैदा करता है, बरसात के समय कल-कारखानों का दुर्गेश जल सब नदी-नालों में घुल मिल जाता है , इससे अनेक बीमारियां पैदा होती हैं, दूषित जल पीने से मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीवो के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
ध्वनि प्रदूषण
मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए, परंतु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर गाड़ियों की किल्ल-पों की लाउड-स्पीकरओं के ध्वनि के कारण बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है। विवाह, धार्मिक अनुष्ठानों, मेलों, पार्टियों में लाउडस्पीकर का प्रयोग और डीजे के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।
मृदा प्रदूषण
मृदा प्रदूषण अधिक मात्रा में कीटनाशकों व रसायनों की उपस्थिति के कारण हो सकता है, यह मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करता है।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण
प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने वैज्ञानिक साधनों का अधिकाधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूल, पेड़ों की कटाई आदि दोषी हैं, प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है, वृक्षों की अंधाधुंध काटने से मौसम चक्र बिगड़ता है, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली ना होने से भी प्रदूषण बढ़ता है।
दुष्परिणाम
उपयुर्क्त प्रदूषण के कारण मानव की स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है, खुली हवा में लंबी सांस लेने तक को तरस गया है इंसान। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं, जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं।
भोपाल गैस का कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए, पर्यावरण प्रदूषण के कारण समय पर वर्षा नहीं होती है, ना सर्दी, गर्मी का चक्र ठीक से चलता है, सुखा, बाढ़ ओला आदि प्राकृतिक प्रकोप के कारण भी प्रदूषण होता है।
प्रदूषण रोकने का उपाय
विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाना चाहिए, ताकि हरियाली अधिक हो, सड़कों के किनारे घने वृक्षों, आबादी वाले क्षेत्र खुले हो हवादार हो, हरियाली से ओतप्रोत हो, कल-कारखाने को आबादी से दूर रखना चाहिए, और उन से निकलने वाला प्रदूषित अम्ल को नष्ट करने के लिए उपाय सोचने चाहिए।
उपसंहार
मानव ने आधुनिकता और वैज्ञानिकता के नाम पर प्रकृति का दोहन किया है, परिणाम स्वरूप पर्यावरण प्रदूषित हो गई है, और इसका जिम्मेदार केवल और केवल मनुष्य हैं, सरकार को चाहिए कि अभियान चलाकर जन-जन को इस समस्या के प्रति जागरूक करें, और हम सबको भी एक जिम्मेदार व्यक्ति बन कर निजी स्तर पर संकल्प लेकर पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना चाहिए।