दुनिया की सबसे बड़ी इमारत कौन सी है?

दुनिया की सबसे बड़ी इमारत कौन सी है?

बुर्ज खलीफा दुनिया की सबसे बड़ी इमारत है जिसकी लंबाई 828 मीटर है।

बुर्ज खलीफा के बारे में

बुर्ज खलीफा दुनिया की सबसे ऊंची इमारत है। जिसकी लंबाई 828 मीटर है। इस विशालकाय इमारत को बनाने के लिए 12000 वर्कर्स और इंजीनियरस ने 6 सालों की कड़ी मेहनत से बनाई है। इस इमारत को बनाना इतना आसान नहीं था क्योंकि इस ऊंची इमारत को बनाने के लिए इस में काम करने वाले वर्कर्स को अपनी जान की बाजी लगानी थी।

असल में 163 मंजिला ऊंची इमारत को बनाने में 25,50,000 क्यूबिकमीटर कंक्रीट और उन 39,000 टन सरिया का प्रयोग किया गया है और इस पूरे बिल्डिंग को बनाकर तैयार करने में करीब 1.5 अरब डॉलर का खर्चा आया। इस पूरे बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम डेविड ब्रैडफोर्ड को सौंपा गया था। 

जहां इसी कंस्ट्रक्शन के मैनेजर यानी डेविड ने बुर्ज खलीफा के नक्शे को तैयार होने से पहले ही इसको बनाने का काम शुरू कर दिया था क्योंकि इनका साफ-साफ कहना था कि क्योंकि अगर हम इस के नक्शे में उलझे रहे तो शुरुआत के 3 साल तो हमें ऑफिस में बैठकर निकालने पर जाएंगे‌। जो कि वाकई में दिमाग का काम है हालांकि चीज गलत भी हो सकती थी

लेकिन अब डेविड इतने बड़े कंस्ट्रक्शन थे तो इन्होंने जरूर कुछ ना कुछ तो सोचा होगा। इतनी ऊंची इमारत बनाने के लिए बुर्ज खलीफा के स्ट्रक्चर इंजीनियर की टीम ने सबसे पहले बटरस्टिक कोर स्ट्रक्चर कोर तैयार किया। स्ट्रक्चर को इस तरह बनाया गया कि इमारत के बीचो-बीच पहले कोर तैयार किया जा सके और फिर इसके तीनों साइड को भी तैयार कर दिया गया। 

जब यह पूरा स्ट्रक्चर मजबूती से खड़ा हो गया तो इसी के ऊपर बुर्ज खलीफा की इमारत भी तैयार की गई इस पूरे इमारत की बुनियाद 75 मिली मीटर पर रखी गई थी‌ यह जो तीनों साइड बने हैं इनके ऊपर स्टील के सरिए को लगाकर इन पर कंक्रीट को डाला जाता था।

और फिर जब कंक्रीट पूरी तरह सेट हो जाता था तो पूरी टीम सांचे को ऊपर ले जाती थी और यही प्रोसेस बार-बार दोहराया जाता था यानी कि इस इमारत के ऊपर हर बार एक नया बिल्डिंग जुड़ने लगी और फिर बेसिक स्ट्रक्चर की मदद से बुर्ज खलीफा को बनाकर तैयार कर दिया गया। 

यह जो तीनों साइड यानी यह जो तीनों विंस हैं, जो बिल्कुल कोर के साथ जुड़े हैं इसी वजह से यह बिल्डिंग बाकियों के मुकाबले काफी मजबूत है और यही कारण है कि इतनी ऊंचाई पर मजबूती से खड़ी है आज से पहले कभी भी किसी भी बिल्डिंग का इस तरह का स्ट्रक्चर तैयार नहीं किया गया।

वैसे एक सच यह है कि आजकल इस तरह की बिल्डिंग भी कभी बनाई नहीं गई है तभी तो इस बिल्डिंग के बनने के इतने सालों बाद आज भी अगर कोई इसे देखता है तो उसे देखता ही रह जाता है बुर्ज खलीफा को बनाने के लिए नॉर्मल कंक्रीट की जगह 25 अलग-अलग चीजों को मिलाकर नए तरीके का मजबूत कंक्रीट तैयार किया गया। 

असल में यह कंक्रीट ऐसा था जो इमारत के ऊपरी हिस्से तक पहुंचने तक लिकक्विड रहे और बाद में ऊपर जाते ही तेजी से सेट हो जाए क्योंकि दुबई में होने वाली तेज गर्मी के कारण कंक्रीट लगने से पहले ही जम जाता है, इसी वजह से इसे रात के समय डाला जाता था।

और तो और इसके अंदर बर्फ और ठंडा पानी डाला जाता था ताकि इसके अंदर ठंडक बनी रहे और इस कंक्रीट को पहुंचाने के लिए कंस्ट्रक्शन टीम ने दुनिया के सबसे ताकतवर 3 कंक्रीट पंप का इस्तेमाल किया और 32 महीनों तक इन तीनों पंप्स ने 165000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट पंप किया था जो कि बहुत बड़ी क्वांटिटी होती है।

काम शुरू होने के 3 साल बाद बुर्ज खलीफा का निर्माण 512 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया। अब इतनी ऊंचाई पर बिल्डिंग का निर्माण पहुंच गया तो आगे का काम शुरू करने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों की जरूरत थी।

जो कि ऊंचाई तक सामानों को पहुंचा सके। जिन क्रेन मशीनों का इस्तेमाल किया गया था वह एक एक मशीनों का वजन 120 टन था लेकिन जैसे-जैसे बुर्ज खलीफा की लंबाई बढ़ रही थी वैसे वैसे क्रेन मशीन को भी सेट करना था।

और उसे सेट करने का काम मजदूरों द्वारा ही किया जा रहा था यह सभी वर्कर्स और साथ में इन को गाइड करने वाले इंजीनियर अपनी जान पर खेलकर इस काम को पूरा कर रहे थे। 

यह सारा काम हो जाने के बाद अब सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि इतनी बड़ी इमारत को हवा के प्रवाह से कैसे बचाया जा सकता है क्योंकि इस तरह के समस्याएं पहले भी बड़ी-बड़ी इमारतों में देखी जा चुकी है थी।

असल में घूमती हुई हवाएं इन गगनचुंबी इमारतों के दोनों साइड से चिपक कर गुजरते हैं, जिसके कारण इमारत हिलना शुरू हो जाते हैं, ऐसे में हवा बुर्ज खलीफा को नुकसान न पहुंचाए इसलिए बुर्ज खलीफा की बिल्डिंग में कुछ सुधार किए गए पहली चीज तो बुर्ज खलीफा के ऊपर चौड़ाई में कमी लाई गई और दूसरा बुर्ज खलीफा के आकार को हवा के मौजूदा दिशाओं के हिसाब से पूरे टावर के दिशाओं में फेरबदल किया गया।

बुर्ज खलीफा बिल्डिंग में नॉर्मल कांच का इस्तेमाल नहीं किया गया क्योंकि कोई भी नॉर्मल कांच का ग्लास दुबई की गर्मी को नहीं रोक सकता था, अगर बुर्ज खलीफा में नॉर्मल कांच का ग्लास इस्तेमाल किया जाता तो बहुत जल्दी गर्म होकर कांच पिघलने लग जाता, यही कारण है कि बुर्ज खलीफा में लगाए जाने वाले ग्लास पैनल में ऐसे कांच का चुनाव किया गया।

जिसके शीशे के ऊपर दो परत चढ़ी हुई थी पहली परत सिल्वर कोटिंग की थी जो धूप की गर्मी और अल्ट्रावायलेट रेस को रोककर वापस मोड़ देती थी और दूसरी परत टाइटेनियम की चढ़ी थी।

लेकिन इस तरह का ग्लास पैनल बहुत ही ज्यादा महंगी थी जहां एक ग्लास पैनल की कीमत $2000 यानी डेढ़ लाख रुपए थी और बुर्ज खलीफा के अंदर तो वैसे 24000 ग्लास पैनल लगने थे यानी कि कुल ग्लास की कीमत चार करोड़ 80 लाख डॉलर होती इनके इतना महंगे होने के बावजूद बुर्ज खलीफा में ग्लास पैनल को लगाया गया।

ताकि दुनिया की सबसे ऊंची इमारत को बनाने में किसी भी तरह का कोई कंप्रोमाइज ना हो, 6.4 मीटर लंबा एक ग्लास का पैनल लगभग साढ़े 700 किलोग्राम का था और इसी तरह के पूरे 24000 ग्लास के पैनल लगाने जाने थे।

अब जाहिर सी बात है कि इतने लंबे और भारी ग्लास पैनल को लगाने की बारी आई तो यह अब तक की सबसे मुश्किल कामों  में से एक था क्योंकि जरा से हवा के झोंके से यह ग्लास पैनल हिलने–डुलने लगते थे।

और यहीं पर सबसे बड़ी मुश्किल आ रही थी क्योंकि अगर कहीं गलती से ग्लास पैनल टूट कर नीचे गिर जाते तो नीचे मौजूद काम करने वाले वर्कर्स को बुरी चोट लग सकती थी, और भले ही इस तरह के आंकड़े सामने नहीं आए हों लेकिन जहां तक हमें पता है कि बुर्ज खलीफा के बनने के दौरान कई सारे वर्कर्स जख्मी भी हुए हैं यहां तक कि कुछ को मौत का खतरा भी हो गया था।

लगातार इस तरह के हो रहे हादसों के बावजूद भी वर्कर्स ने हार नहीं मानी और अपनी जान पर खेलकर इतने भारी भारी शीशों को बुर्ज खलीफा बिल्डिंग में सेट कर दिया, ग्लास पैनल तो लगा लग गई और बुर्ज खलीफा लगभग पूरा तैयार हो गया था।

लेकिन अब इंजीनियर और वर्कर्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि बिल्डिंग के सबसे ऊपर 136 मीटर लंबा स्टील का पाइप लगाना था, जिसका वजन 350 टन था।

क्योंकि अगर बुर्ज खलीफा को आखरी मंजिल पर खत्म कर दिया जाता तो यह बिल्डिंग ऊपर से अधूरी रह जाती और इतना शानदार लुक ना दे पाती जितना यह अभी देती है और बिल्डिंग आसमान को छूती नजर आए इसलिए स्टील की इस पाइप को लगाना बहुत जरूरी था।

पर इतनी ऊंचाई पर पाइप लगाने के लिए कोई भी क्रेन मशीन नहीं थी और 350 टन का वजन कोई भी हेलीकॉप्टर उठा नहीं सकता था, जिस वजह से लंबे समय तक इसे बनाने वाले इंजीनियर दुविधा में रहे।

और आखिर इस पाइप को ऊपर पहुंचाया कैसे जाएगा? फिर उनके दिमाग में एक आइडिया आया क्यों न पाइप को छोटे-छोटे टुकड़ों में करके बिल्डिंग के ऊपर पहुंचा कर ऊपर जोड़ दिया जाए और ऐसा ही किया गया, फिर  136 मीटर लंबा बना दिया गया।

बुर्ज खलीफा को कितने वर्कर्स ने मिलकर बनाया था?

12000 वर्कर्स और इंजीनियर ने 6 सालों की कड़ी मेहनत से बनाई है।

बुर्ज खलीफा में कितने मंजिल है?

बुर्ज खलीफा में 163 मंजिल है।

बुर्ज खलीफा को कब बनाया गया?

बुर्ज खलीफा को बनाने के लिए 6 जनवरी 2004 में काम की शुरुआत हुई।