प्रस्तावना
विवाह के अवसर पर वर पक्ष के लोग किसी चीज या पैसा का मुंह मांगा मांग करते हैं, उसे दहेज कहा जाता है, यह प्रथा अत्यंत प्राचीन काल से चलती आ रही है, आज यह प्रथा हमारे जीवन में धीरे-धीरे बुराई का रूप धारण कर रही है, अगर कन्या के माता-पिता उसे खुशी से कुछ भेज देते हैं, तो वह उसके पिता की तरफ से उपहार होता है।
दहेज प्रथा की शुरुआत कब हुई थी?
मान्यताओं के अनुसार दहेज प्रथा की शुरुआत वैदिक काल में हुई थी लेकिन उत्तर वैदिक काल में दहेज प्रथा की कोई भी जिक्र नहीं है लेकिन उत्तर वैदिक काल में दहेज प्रथा वहतु के रूप में प्रचलित होना शुरू हुआ था लेकिन यह दहेज प्रथा का स्वरूप बिल्कुल भी नहीं था।
उत्तर वैदिक काल में पिता अपनी पुत्री के विवाह में धन दौलत या वस्तु इसलिए देता था कि मुसीबत में काम आ सके उत्तर वैदिक काल में पिता अपनी पुत्री के विवाह में जो भी वस्तु धन दौलत देता था उसे आमतौर पर वहतु कहा जाता था और इसकी कोई सीमा नहीं थी।
पिता अपनी पुत्री को अपनी इच्छा के अनुसार जितना धन दौलत वस्तु देना चाहते थे वह दे सकते थे, पुत्री को अपने शादी में अपने पिता के यहां से जो भी वस्तु धन दौलत प्राप्त होता था उस पर पुत्री के ससुराल के परिवार वालों का कोई अधिकार नहीं होता था।
दहेज प्रथा की बुराइयां
अब सवाल यह उठता है कि विवाह के समय दिया गया चीज बुरा है या नहीं! विवाह के समय दिया गया उपहार बुरा क्यों नहीं है? क्या एक पिता अपनी बेटी को खाली हाथ विदा कर दे?बिल्कुल नहीं! अपने चांद सी गुड़िया के लिए धन-दौलत, सामान, वस्त्र, गहना आदि देना प्रेम का प्रतीक है, किंतु यह उपहार प्रेम भाव से दी जानी चाहिए, दूल्हे वाले पक्ष की ओर से जबरदस्ती वस्तु और पैसा की मांग करना बहुत ही बुरी बात है।
लेकिन कन्या के पिता मजबूरी में आकर दहेज की मांगों को पूरा करता है, उपहार के रूप में दिए जाने वाले दहेज तो ठीक है, लेकिन जबरदस्ती मांगा जाना ठीक नहीं है, दहेज को बुरा वहां कहा जाता है जहां मुंह मांगा कीमत की मांग होती है, प्रेम से दिया हुआ दहेज उपहार है, जबरदस्ती मांग करने वाली संपत्ति नहीं।
दुर्भाग्य से आजकल दहेज की जबरजस्ती मांग की जा रही है, दुल्हों के भाव लगते हैं, बुराई की हद यहां तक बढ़ गई है कि जो जितना शिक्षित है समझदार है, कोई नौकरी वाला है उसका भाव उतना ही अधिक होता है, आज के समय डॉक्टर, इंजीनियर का भाव 10 से 15 लाख रुपया और कार की मांग होती है।
आई.ए.एस. का 20 से 25 लाख साथ में एक गाड़ी की मांग रहती है, प्रोफ़ेसर का 8 से 10 लाख और गाड़ी की मांग होती है, ऐसे में अनपढ़ व्यापारी जो खुद को कौड़ी के तीन बिकते हैं, उनका भाव कई बार लाखों तक होती है ऐसे में लड़की के पिता कहां मरे; वह दहेज की मंडी से योग्यतम वर खरीदने के लिए पैसा कहां से लाए! बस यही से बुराई शुरू हो जाती है।
दहेज प्रथा की दुष्परिणाम
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम अनेक हैं, या तो कन्या के पिता लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, काला- धन आदि का सहारा लेना पड़ता है, या उसकी लड़की अयोग्य वर्णों के मत्थे मढ़ दी जाती है, मुंशी प्रेमचंद की ‘निर्मला’ दहेज के अभाव में बूढ़े तोताराम के साथ ब्याह दी गई परिणाम क्या हुआ तोताराम की हरी-भरी जिंदगी शमसान में मिल गई स्वयं निर्मला भी तनाव ग्रस्त होकर चल बसी, हम रोज समाचार पत्रों, टीवी न्यूज़ में सुनते हैं, कि यह अनूपशहर कोई युवती रेल के नीचे कटकर मर गई, किसी बहू को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला, किसी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली, यह सब परिणाम दहेज की वजह से हो रही है।
दहेज प्रथा रोकने के उपाय
हालांकि दहेज को रोकने के लिए समाज में संस्थाएं बनी हुई हैं, युवकों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर भी लिए गए हैं, कानून भी बने हैं परंतु समस्या ज्यों की त्यों है, सरकार ने दहेज निषेध अधिनियम के अंतर्गत दहेज के दोषी को दंड देने का विधान रखा है परंतु वास्तव में आवश्यकता है।
जन जागृति की जब तक युवक दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे, और युवतियां दहेज लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगे, तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा, हमारे साहित्यकारों और कलाकारों को चाहिए कि वे युवकों के सिद्धियों में दहेज के प्रति तिरस्कार जगाएं, प्रेम विवाह को प्रोत्साहन देने से भी यह समस्या दूर हो सकती हैं।
उपसंहार
हमें सदैव लड़की पक्ष से जबरदस्ती दहेज नहीं मांग करनी चाहिए, यह एक बहुत ही गलत बात होगी अगर आपके आसपास में कोई दहेज की लेनदेन की बात करती है तो उसे समझाना चाहिए, साथ ही साथ दहेज मांगने के लिए मना करना चाहिए, आज के समय में हर युवक को दहेज लेने की मांग को बहिष्कार करना चाहिए, एवं युवतियों को दहेज के लिए तिरस्कार करना चाहिए, इससे ना ही कोई लड़की आत्महत्या करने की कोशिश करेगी और ना ही प्रेम विवाह करेगी।